Tuesday 2 June 2015

Samas- very very most usefull

समास परिभाषा:

‘समास’ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘छोटा-रूप’। अतः जब दो या दो से अधिक पद अपने बीच की विभक्तियों का लोप कर जो छोटा रूप बनाते हैं, उसे समास, सामासिक
शब्द या समस्त पद कहते हैं। जैसे ‘रसोई के लिए घर’ शब्दों में से ‘के लिए’ विभक्ति का लोप करने पर नया शब्द बना ‘रसोईघर’, जो एक सामासिक शब्द है।
किसी समस्त पद या सामासिक शब्द को उसके विभिन्न पदों एवं विभक्ति सहित पृथक् करने की क्रिया को समास का विग्रह कहते हैं जैसे - विद्यालय, विद्या के लिए आलय,
माता-पिता = माता और पिता।
प्रकार:
समास छः प्रकार के होते हैं-
१. अव्ययीभावसमास,: २. तत्पुरुषसमास:
३. द्वन्द्वसमास: ४. बहुब्रीहिसमास:
५. द्विगुसमास: ६. कर्मधारयसमास:।

१. अव्ययीभावसमास: -

अव्ययीभाव समास में प्रायः
(i)पहला पद प्रधान होता है।
(ii) पहला पद या पूरा पद अव्यय होता है। (वे शब्द जो लिंग, वचन, कारक, काल के
अनुसार नहीं बदलते, उन्हें अव्यय कहते हैं)
(iii)यदि एक शब्द की पुनरावृत्ति हो और दोनों शब्द मिलकर अव्यय की तरह प्रयुक्त
हो, वहाँ भी अव्ययीभाव समास होता है।
(iv) उपसर्गयुक्त पद भी अव्ययीभाव समास होते हैं -
यथाशक्ति: = शक्ति के अनुसार।
यथाशीघ्रम् = जितना शीघ्र हो।
यथाक्रम: = क्रम के अनुसार।
यथाविधि: = विधि के अनुसार।
यथावसर: = अवसर के अनुसार।
यथेच्छा = इच्छा के अनुसार।
प्रतिदिनम् = प्रत्येकं दिनम्। दिनं दिनम्। हर दिन
प्रत्येक: = हर एक। एक:-एक:। प्रति एक:
प्रत्यक्ष: = अक्षि के आगे।
गृहं-गृहम् = प्रत्येकं गृहम्। हर घर। किसी भी घर को न छोड़कर।
आमरणम् = मरने तक, मरणपर्यन्तम्।
आसमुद्रम् = समुद्रपर्यन्तम्।
यावज्जीवनम् = जीवनपर्यन्तम्।
निर्विवाद: = बिना विवाद के।

२. तत्पुरुषसमास:

(i)तत्पुरुष समास में दूसरा पद (पर पद) प्रधान होता है अर्थात् विभक्ति का लिंग, वचन
दूसरे पद के अनुसार होता है।
(ii) इसका विग्रह करने पर कर्ता व सम्बोधन की विभक्तियों (ने, हे, ओ, अरे) के अतिरिक्त
किसी भी कारक की विभक्ति प्रयुक्त होती है तथा विभक्तियों के अनुसार ही इसके उपभेद होते हैं।
जैसे -
(क) कर्मतत्पुरुष: (को)
कृष्णार्पणम् = कृष्ण को अर्पण।
वनगमनम् = वन को गमन।
प्राप्तोदकम् = उदक को प्राप्त।

(ख) करणतत्पुरुष: (से/के द्वारा)
ईश्वरप्रदत्तम् = ईश्वर से प्रदत्त।
हस्तलिखितम् = हस्त (हाथ) से लिखित।
तुलसीकृतम् = तुलसी द्वारा रचित।
दयार्द्र: = दया से आर्द्र।
रत्नजडि़तम् = रत्नों से जडि़त।

(ग) सम्प्रदानतत्पुरुष: (के लिए)
हवनसामग्री = हवन के लिए सामग्री।
विद्यालय: = विद्या के लिए आलय।
गुरुदक्षिणा = गुरु के लिए दक्षिणा।
बलिपशु: = बलि के लिए पशु।

(घ) अपादानतत्पुरुष: (से पृथक्)
ऋणमुक्त: = ऋण से मुक्त।
पदच्युत: = पद से च्युत।
मार्गभ्रष्ट: = मार्ग से भ्रष्ट।
धर्मविमुख: = धर्म से विमुख।

(च) सम्बन्धतत्पुरुष: (का, के, की)
मन्त्रिपरिषद् = मन्त्रियों की परिषद्।
प्रेमसागर: = प्रेम का सागर।
राजमाता = राजा की माता।
रामचरितम् = राम का चरित।

(छ) अधिकरणतत्पुरुष: (में, पे, पर)
वनवास: = वन में वास।
जीवदया = जीवों पर दया।
ध्यानमग्न: = ध्यान में मग्न।
घृतान्नम् = घी में पक्का अन्न।
कविपुंगव: = कवियों में श्रेष्ठ।

3. द्वन्द्वसमास:
(i)द्वन्द्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं।
(ii) दोनों पद प्रायः एक दूसरे के विलोम होते हैं, सदैव नहीं।
(iii)इसका विग्रह करने पर ‘और’, अथवा ‘या’ का प्रयोग होता है।
माता-पिता = माता और पिता।
पाप-पुण्यम् = पाप या पुण्य/पाप और पुण्य।
अन्न-जलम् = अन्न और जल।
जलवायु: = जल और वायु।
फल-पुष्पम् = फल और पुष्प।
नील-लोहित: = नीला और लोहित (लाल)।
धर्माधर्म: = धर्म या अधर्म।
सुरासुर: = सुर या असुर/सुर और असुर।
शीतोष्णम् = शीत या उष्ण।
यशापयशम् = यश या अपयश।
शीतातप: = शीत या आतप।
शस्त्रास्त्रम् = शस्त्र और अस्त्र।
कृष्णार्जुन: = कृष्ण और अर्जुन।

४. बहुब्रीहिसमास:
(i)बहुब्रीहि समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता।
(ii) इसमें प्रयुक्त पदों के सामान्य अर्थ की अपेक्षा अन्य अर्थ की प्रधानता रहती है।
(iii)इसका विग्रह करने पर ‘वाला, है, जो, जिसका, जिसकी, जिसके, वह आदि
आते हैं।
गजानन: = गज का आनन है जिसका वह (गणेश)।
त्रिनेत्र: = तीन नेत्र हैं जिसके वह (शिव)।
चतुर्भुज: = चार भुजाएँ हैं जिसकी वह (विष्णु)।
षडानन: = षट् (छह) आनन हैं जिसके वह (कार्तिकेय)।
दशानन: = दश आनन हैं जिसके वह (रावण)।
घनश्याम: = घन जैसा श्याम है जो वह (कृष्ण)।
पीताम्बर: = पीत अम्बर हैं जिसके वह (विष्णु)।
गिरिधर: = गिरि को धारण करने वाला है जो वह।
मुरारि: = मुर का अरि है जो वह।
आशुतोष: = आशु (शीघ्र) प्रसन्न होता है जो वह।
नीललोहित: = नीला है लहू जिसका वह।
वज्रपाणि: = वज्र है पाणि में जिसके वह।
सुग्रीव: = सुन्दर है ग्रीवा जिसकी वह।
मधुसूदन: = मधु को मारने वाला है जो वह।
आजानुबाहु: = जानुओं (घुटनों) तक बाहुएँ हैं जिसकी वह।
नीलकण्ठ: = नीला कण्ठ है जिसका वह।
महादेव: = देवताओं में महान् है जो वह।
मयूरवाहन: = मयूर है वाहन जिसका वह।
कमलनयन: = कमल के समान नयन हैं जिसके वह।
जलज: = जल में जन्मने वाला है जो वह (कमल)।
वाल्मीकि: = वल्मीक से उत्पन्न है जो वह।
दिगम्बर: = दिशाएँ ही हैं जिसका अम्बर ऐसा वह।
कुशाग्रबुद्धि: = कुश के अग्रभाग के समान बुद्धि है जिसकी वह।
मन्दबुद्धि: = मन्द है बुद्धि जिसकी वह।
जितेन्द्रिय: = जीत ली हैं इन्द्रियाँ जिसने वह।
चन्द्रमुखी = चन्द्रमा के समान मुखवाली है जो वह।
अष्टाध्यायी = अष्ट अध्यायों की पुस्तक है जो वह।

5. द्विगुसमास:

(i)द्विगु समास में प्रायः पूर्वपद संख्यावाचक होता है तो कभी-कभी परपद भी संख्यावाचक
देखा जा सकता है।
(ii) द्विगु समास में प्रयुक्त संख्या किसी समूह का बोध कराती है अन्य अर्थ का नहीं, जैसा
कि बहुब्रीहि समास में देखा है।
(iii)इसका विग्रह करने पर ‘समूह’ या ‘समाहार’ शब्द प्रयुक्त होता है।
पक्षद्वयम् = दो पक्षों का समूह।
सम्पादकद्वयम् = दो सम्पादकों का समूह।
त्रिभुज: = तीन भुजाओं का समाहार।
त्रिलोक: वा त्रिलोकी = तीन लोकों का समाहार।
त्रिरत्न: = तीन रत्नों का समूह।
संकलनत्रयम् = तीन का समाहार।
भुवनत्रयम् = तीन भुवनों का समाहार।
चतुर्मास: = चार मासों का समाहार।
चतुर्भुज: = चार भुजाओं का समाहार (रेखीय आकृति)।
चतुर्वर्ण: = चार वर्णों का समाहार।
पंचामृतम् = पाँच अमृतों का समाहार।
पंचपात्रम् = पाँच पात्रों का समाहार।
पंचवटी = पाँच वटों का समाहार।
षड्भुज: = षट् (छः) भुजाओं का समाहार।
सप्ताह: = सप्त अहों (सात दिनों) का समाहार।
सप्तशती = सप्त शतकों का समाहार।
सप्तर्षि: = सात ऋषियों का समूह।
अष्टसिद्धि: = आठ सिद्धियों का समाहार।
नवरत्न: = नौ रत्नों का समूह।
नवरात्रि: = नौ रात्रियों का समाहार।
दशकम् = दश का समाहार।
शतकम् = सौ का समाहार।
शताब्दी = शत (सौ) अब्दों (वर्षों) का समाहार।
चतुष्पथ: = चार मार्गों का समाहार।

६. कर्मधारय समास
(i)कर्मधारय समास में एक पद विशेषण होता है तो दूसरा पद विशेष्य।
(ii) इसमें कहीं कहीं उपमेय उपमान का सम्बन्ध होता है तथा विग्रह करने पर ‘रूपी’
शब्द प्रयुक्त होता है -
पुरुषोत्तम: = उत्तम है पुरुष वह।
नीलकमल: = नीला है जो कमल।
महापुरुष: = महान् है जो पुरुष।
घनश्याम: = घन जैसा श्याम।
पीताम्बर: = पीत है जो अम्बर।
महर्षि: = महान् है जो ऋषि।
नराधम: = अधम है जो नर।
रक्ताम्बर: = रक्त के रंग का (लाल) जो अम्बर।
कुमति: = कुत्सित है जो मति।
कुपुत्र: = कुत्सित है जो पुत्र।
दुष्कर्मम् = दूषित है जो कर्म।
कृष्णपक्ष: = कृष्ण (काला) है जो पक्ष।
मन्दबुद्धि: = मन्द है जो बुद्धि।
शुभागमनम् = शुभ है जो आगमन।
नीलोत्पल: = नीला है जो उत्पल।
मृगनयनी = मृग के समान नयन है जिसके।
चन्द्रमुखी = चन्द्र जैसा मुख है जिसका।
राजर्षि: =  राजाओं में जो ऋषि है।
नरसिंह: = नरों में जो सिंह है।
मुखचन्द्र: = मुख रूपी चन्द्रमा।
वचनामृतम् = वचनरूपी अमृत।
भवसागर: = भवरूपी सागर।
चरणकमलम् = चरणरूपी कमल।
क्रोधाग्नि: = क्रोधरूपी अग्नि।
चरणारविन्द: = चरणरूपी अरविन्द।
विद्याधनम् = विद्यारूपी धन।


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